हम मनुष्य हैं। गंभीर व महत्वपूर्ण बातों के कायल। बेमतलब की बातों में हम कहाँ अपना वक़्त गवाते हैं। दिमाग में ये छोटी-बड़ी बेमतलब की बातों का साम्राज्य ही क्यों न बसा हो, हम अपनी बातों को जटिलता के परतों में लपेटे फ़िरते हैं।
पर सच कहिए तो इन बेमतलब की बातों में ही जीवन का गूढ छिपा है। इनमें भोले-भाले मन की सच्ची और सरल बातें होती हैं। इनके भाव को समझ पाना सच्ची परिपक्वता का परिचायक है।
पंद्रह बेहद रोचक कविताओं के संग्रह को कवयित्री गौरवि सैनी ने ‘बेमतलब की बातें’ नाम दिया है। किताब के अंत में उन्होने बताया है कि कुछ बातें उनके मन पर गहरा असर छोड़ जाती हैं। उन्हीं सौ में से पंद्रह बातों का समागम है यह किताब जिसकी हर कविता अपने आप में एक कथा है।
गौरवि की एक नहीं बल्कि पंद्रह की पंद्रह कवितायें मेरे दिल को छू गयी, कुछ अपनी सी लगी। कुछ बातें तो ऐसी भी थी जिन्हें पढ़ कर लगा मानो मेरी सोच को किसी ने अपने शब्दों में सजाया हो। इतनी सहज और सरल होने के बावजूद बड़ी पते की हैं ये बेमतलब की बातें।
अब किताब से ली गयी इन पंक्तियों को ही ले लीजिये। ये ख़याल हर युवा मन को अपने से जान पड़ते होंगे –
बस अपनी धुन में गुम,
मन ही मन बेबुनियादी
विवाद करा करते थे
हम।
संवाद करना तो सीखा ही नहीं था।
पर फ़िर न जाने एक
सुबह ख़ुद में एक बदलाव देखा।
देखा की
बिना सोचे समझे,
कुछ कर चुके थे हम।
यक़ीन नहीं हुआ।
बिना टोले-मोले,
बिना गहराइयों को टटोले,
आखिर कैसे आगे बढ़ गए थे
हम?
– ऐसे न थे पहले हम
या फिर इन पंक्तियों को ही ले लीजिये। ये मुझे हाल ही में घटे एक घटना की और उससे मिली सीख की याद दिलाते हैं –
मैंने तो ये सोचा, कि
सभी ख़ुश हैं मुझसे।
कभी किसी की नाराज़गी नज़र ही नहीं आई।
…
मुझे क्या पता था,
इतनी शिकायतें होंगी (उनपे) मेरी, कि
कलम की स्याही ख़त्म, पर
शिकायतें ख़त्म नहीं हुई उनकी
अच्छा ही हुआ कि
आँखें बंद थी मेरी।
– आँखें बंद हैं मेरी
अगर कम और सीधे शब्दों में कहूँ तो ये बेमतलब की बातें हम सबके मन की बातें हैं। और कवितायें तो चीज़ ही ऐसी हैं जो कम शब्दों में सहस्त्र कहानियाँ कह जाए। तो अगर आप भी कम समय में इन सीधी सच्ची दिल से निकली बेमतलब कि बातों में ख़ुद को ढूँढने का लुत्फ़ उठाना चाहते हैं तो इस किताब को ज़रूर पढ़ें।
इस पुस्तक को मैं पाँच में से चार अंक देती हूँ।
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